सहेलियों के साथ किया धोखा

सहेलियों के साथ किया धोखा

दोस्तों मैने बताया कि किस तरह मेरे ब्यायफ्रेंड समीर ने एक दिन अचानक मुझे अपने दोस्त के कमरे पर ले जाकर चोद दिया। इसके बाद तो जब भी मौका मिलता वह मुझे वहीं ले जाता और जमकर मेरी चुदाई करता। मैं भी इस खेल में आनंद के गोते लगा रही थी, मगर मैं नहीं जानती थी कि धीरे-धीरे समीर की रुचि मुझसे कम होने लगी है। मुझे वह चोदता तो था मगर बेमन से। अब वह मेरी दोनों सहेलियों में ज्यादा इंटरेस्ट लेने लगा था। उसके साथ बिस्तर पर तो मैं होती मगर वह बातें ज्योति और नगमा की कर रहा होता। वह कई बार यूं ही मेरे कमरे पर आ जाता जब मेरी सहेलियां होती थीं। उनसे बात करने की भी कोशिश करता। ज्योति का तो चूंकि ब्यायफ्रेंड था, इसलिए वह उसे ज्यादा लिफ्ट ही नहीं देती थी, नगमा सीधी-सादी गांव की लड़की थी। इसलिए वह भी उससे दूर ही रहने की कोशिश करती थी। यह बात समीर को पसंद नहीं थी। वह मुझ पर दबाव बनाता कि मैं दोनों से उसकी दोस्ती करवा दूं।
और एक दिन उसने खुलकर कह ही दिया कि और मुझे तो जैसे झटका सा लगा, मगर मैं बेवकूफ फिर उसकी बातों में फंस गई। एक दिन दोस्त के कमरे में मेरी चुदाई करते हुए उसने कहा,
रंजना, तुम्हारी सहेलियां बड़ी ही सेक्सी हैं।
मैं चुदाई के मस्त मूड में थी, सो मैने भी हलके में लिया और मुस्कुराकर पूछा,
क्या बात है मिस्टर। इरादा क्या है तुम्हारा।
इरादा तो वही है जो हर लड़के का होता है, किसी सेक्सी लड़़की को देखकर। मन होता है कि दोनों को पकड़़कर चोद डालूं।
क्यों मुझसे मन भर गया क्या जो दूसरी लड़कियों के बारे में सोचने लगे।
ऐसा नहीं डियर तुम तो मेरा पहला और आखिरी प्यार हो। तुम्हारे अलावा किसी और में मन लग ही नहीं सकता। मगर लड़कों की फितरत होती है, न क्या करूं। इसलिए कह दी मन की बात।
उसके धक्के बराबर चालू थे, मगर अब उनमें गर्मजोशी महसूस नहीं हो रही थी। मैने कहा,
तुम्हारी स्पीड क्यों कम हो रही है। मजा नहीं आ रहा जरा जोर से धक्के मारो न।
धक्के तो मैं मार ही रहा हूं, मगर बार-बार तुम्हारी सहेलियों का फिगर आंखों के सामने आ रहा है। क्या मस्त जवानियां हैं दोनों। काश एक बार उनकी चूत और चूंचियों का दर्शन करने को मिल जाए।
ऐ तुम फिर ट्रैक बदल रहे हो समीर। जो कर रहे हो उसमें ध्यान लगाओ, जो मिल रहा है उसी में खुश रहो। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों के चक्कर में अपनी भी चली जाए।
मैं तुम्हें नहीं खो सकता रंजना, मगर क्या करूं दोनों की सूरत आंखों से उतरती ही नहीं। क्या एक बार मैं उनके नंगे जिस्म का दर्शन नहीं कर सकता। क्या सेक्सी चूत होगी, क्या मस्त गांड होगी।
अब तो उसकी बातों से मेरी भी उत्तेजना बढऩे लगी थी। न जाने क्यों मुझे भी मजा आने लगा था। ऊपर से मैं बोली,
ऐ मिस्टर मार खाओगे तुम जो ऐसी बातें सोची भी। भला ऐसा कैसे हो सकता है। वे क्यों तुम्हें अपना जिस्म दिखाने लगी।
शायद मैं उसकी बातों में फंसने लगी थी। इसका अहसास उसे होने लगा था। वह बोला,
हो क्यों नहीं सकता। यदि तुम चाहो तो मैं उनके नंगे जिस्म देख सकता हूं।
देखो समीर मैं मोबाइल से उनकी फिल्म नहीं बनाउंगी, मैंने अंदाजा लगाते हुए कहा कि वह क्या चाहता है।
मैं तुम्हें फिल्म बनाने को नहीं कह रहा हूं।
तो फिर तुम उनका नंगा जिस्म कैसे देखोगे। मैने महसूस किया कि ये सब बातें करते हुए उसके धक्के भी तेज होते जा रहे हैं। उसकी चुदाई में वही जोश था, जो पहली बार चोदने पर था। मैं सिसकारी भरने लगी।
आह...ओह... समीर फिर तुम कैसे उनकी चूत और गांड देखोगे।
रंजना तुम्हें मेरा साथ देना होगा। तुम चाहोगी तो ये संभव हो जाएगा। हांफते हुए समीर बोला।
कैसे...आह...सी...सी..... ओह....समीर....र...और...जोर....से..आह...क्या साथ देना होगा।
समीर और जोश में आते हुए बोला, बताता हूं मेरी जान।
और इतना कहते-कहते उसने जोर का एक शॉट मारा और मेरी चूत उसके वीर्य से भर गई। मैने भी जोर की सिसकारी ली और अपनी चूत को कस लिया। मुझे ऐसा लगा कि बहुत दिनों बाद उस आनंद की अनुभूति हुई जिसने जनंत की सैर करवा दी। समीर कुछ देर मेरे ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा फिर बोला,
रंजना तुम साथ दो तो मैं उन्हें नंगा करके देख सकता हूं।
कैसे मैने पूछा।
देखो मैं तुम्हें एक शीशी दूंगा। तुम रात में उनके सोने के बाद उसे खोलकर कमरे में रख देना और दरवाजा बंद करके बाहर निकल आना। कुछ ही देर में दोनों बेसुध हो जाएंगी। इसके बाद तुम मुझे फोन करके बुला लेना।
समीर, यह तुम क्या कह रहे हो। वे दोनों देर रात तक जागती और पढ़ती हैं। आधी रात के बाद तुम वहां आओगे।
तो क्या हुआ रंजना। मैं वहीं आसपास किसी रेस्टोरेंट में रहुंगा। तुम्हारा फोन आते ही आ जाउंगा।
नहीं समीर यह गलत है, मैं इस तरह अपनी सहेलियों को धोखा नहीं दे सकती।
प्लीज रंजना मेरी खातिर। तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं। मैं बस उन्हें एक बार नंगा देखना चाहता हूं।
और समीर ने हमेशा की तरह मुझे मना ही लिया। मैं उसकी इस जिद के आगे भी हार गई और मैने कहा,
ठीक है, बताओ कब करना है।
वह खुश होते हुए बोला, पहले मैं उस शीशी का इंतजाम कर लूं। फिर तुम्हें बताता हूं।
देखो समीर मैं तुम्हारा काम कर तो रही हूं, पर तुम्हें भी वादा करना होगा कि तुम उन्हें केवल नंगा करके देखोगे कुछ करोगे नहीं।
मैं वादा करता हूं रंजना। मैं केवल देखकर लौट आउंगा।

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समीर मुझे तीन दिन बाद मिला। वह मुझे पार्क में ले गया और वहां उसने मेरा हाथ में एक शीशी पकड़ाते हुए कहा,
यह है वह शीशी, पांच मिनिट में ही दोनों को बेसुध कर देगी।
ठीक है समीर तुम मुझसे पता नहीं क्या-क्या करवाओगे।
तुम तो मेरी जान हो। अपनी जान के लिए इतना तो कर ही सकती हो।
कर तो रही हूं समीर, मगर अपना वादा याद रखना।
मुझे याद रहेगा डियर। यह काम तुम्हें आज ही करना है। क्योंकि कल रविवार है, तुम लोग देर तक सोती हो। इसलिए तुम्हारी सहेलियों को भी शंका नहीं होगी कि सुबह जल्दी उठ क्यों नहीं पाईं।
ठीक है समीर मैं रात में तुम्हें फोन करती हूं।
ठीक है। अब चलें।
हंंू, जैसे मैं कहीं खोई होउं। मेरा मन इसके लिए गवारा नहीं कर रहा था, मगर मैं मजबूर थी। समीर की जिद हमेशा मुझे तोड़ देती थी। समीर ने मुझे रूम पर छोड़ा और चला गया। मैं भारी मन से सीढिय़ां चढ़कर ऊपर आई। ज्योति और नगमा रूम पर ही थीं। उन्होंने मुझे यूं उदास देखा तो ज्योति चहक उठी,
क्या बात है रंजना, आज किसी दूसरे छेद का इस्तेमाल कर लिया क्या समीर ने।
मैं कैसे बताती कि आज दोनों की आबरू समीर के सामने बेपर्दा होनी थी। मैं बस मुस्कुरा दी और बाथरूम में घुस गई।
इसके बाद हमारी कोई खास बातें नहीं हुई। खाना खाकर हम बिस्तर पर आ गए। मैं अकेली एक रूम में सोती थी, क्योंकि मुझे किसी और के साथ सोना पसंद नहीं था। ज्योति और नगमा दूसरे कमरे में डबलबेड पर सोते थे। वे अपने कमरे में जाकर पढऩे लगीं और मैं अपने रूम में कंप्यूटर पर बैठ गई।
रात को करीब 12 बज रहे थे। मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ी। मुझे पता था कि इस समय तक दोनों सो जाती हैं। मैने उनके कमरे में जाने के पहले चाय बना ली और दो कप में ले ली। शीशी मेरी चूंचियों के बीच रखी थी। मैने सोचा कि यदि दोनों जाग रही होंगी तो कह दूंगी कि चाय देने आई थी। उनके कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर घुसी तो दोनों को बिस्तर पर लेटी पाया। कमरे में जीरो का बल्ब जल रहा था, जिसकी रोशनी में दोनों नजर आ रही थीं। दोनों गहरी नींद में लग रही थीं। खैर मुझे कौन सा उन्हें उठाना था। मैं चाय के कप लेकर उनकी कंप्यूटर टेबल के पास पहुंची, जो बिस्तर के पास ही रखी थी। मैने शीशी निकाली और उसका ढक्कन खोलकर टेबल पर रख दिया। इस दौरान दुपट्टे से अपनी नाक बंद कर ली और सांस रोक ली। मैं ऐसी ही हालत में बाहर आ गई और दरवाजा बंद कर लिया।
बाहर आकर मैने समीर को फोन लगाकर बता दिया कि उसके बताए अनुसार शीशी खोलकर उनके कमरे में रख आई हूं। वह बोला,
मैं आ रहा हूं रंजना।
समीर मुझे न जाने क्यों डर लग रहा है।
डरो नहीं कुछ नहीं होगा। वैसे भी मैं रात में कई बार तुम्हारे कमरे पर आ चुका हूं। इसलिए कोई देख भी लेगा तो कोई प्राब्लम नहीं होगी।
हां मगर दोनों उठ गईं तो।
तुम चिंता मत करो। यह दवा चिडिय़ाघर में जानवरों को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है। दोनों सुबह तक अंटा गाफिल रहेंगी। उन्हें चाकू मार दो तब भी नहीं उठेंगी।
समीर मैं चेक कर लूं। इसके बाद तुम आना।
मैं आ रहा हूं रंजना। चेक तुम मेरे आने के बाद या मेरे आने तक कर लेना। इतना कहकर समीर ने फोन काट दिया।
मैने करीब 10 मिनिट तक इंतजार किया। दरवाजा खोलकर ही रखा था ताकि समीर को खटखटाना न पड़े। मैं अभी कुछ सोच ही रही थी कि समीर मेरे सामने खड़ा था। मैं चौंककर अपने खयालों से बाहर आई। समीर ने कहा,
चेक किया तुमने।
नहीं अभी नहीं। तुम्हारा इंतजार कर रही थी।
तो जाओ चेक कर आओ कि दोनों बेसुध हुई या नहीं।
तुम भी मेरे साथ चलो समीर।
ठीक है चलो।
इतना कहकर समीर मेरा हाथ पकड़कर उनके कमरे की तरफ चल दिया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। समीर ने मुझे इशारा किया तो मैं दरवाजा खोलकर उनके कमरे में घुस गई। पहले मैने अपना मुंह और नाक दुपट्टे से ढंक लिया। मैं सीधे टेबल की तरफ गई और पहले शीशी का ढक्कन लगाकर अपनी कुर्ती मेें छिपा ली। इसके बाद मैने हर तरह से दोनों को जगाकर देखा। हाथ-पैर खींचे, उन्हें नोंचा, यहां तक कि जोर से बाल भी खींच लिए, मगर दोनों वाकई अंटा गाफिल थीं। मैं बाहर आ गई। समीर ने पूछा,
क्या हुआ, सब ठीक है।
मैने हां में सिर हिला दिया तो समीर ने कमरे में कदम बढ़ाए। मैने उसका हाथ पकड़ लिया। उसने मेरी तरफ सवालिया नजरों से देखा तो मैने कहा,
समीर प्लीज और कुछ मत करना दोनों के साथ।
तुम्हें मुझ पर भरोसा है न जान। मैं कुछ नहीं करूंगा। केवल उनके नंगे जिस्म देखकर लौट आउंगा। फिर तुम्हें जी-भर कर चोदूंगा। तुम्हें भरोसा नहीं तो मेरे साथ अंदर चलो।
मैने हां में सिर हिला दिया और उसके साथ कमरे के अंदर चली आई। मैने देखा मेरी दोनों सहेलियां बेड पर बेसुध पड़ी हुई थीं। ज्योति ने नाइटी पहन रखी थी और नगमा ने हमेशा की तरह सलवार सूट।

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समीर कुछ देर तक दोनों को देखता रहा। फिर घूमकर टेबल के पास पहुंचा। उसने टेबल लैंप जला दिया। मैने पूछा,
यह क्या कर रहे हो।
लाइट नहीं होगी तो इन्हें देखुंगा कैसे। अब तुम शांत होकर एक जगह बैठ जाओ। और मुझे अपना काम करने दो। वह थोड़ा रुखाई से बोला।
उसके लहजे में पता नहीं ऐसा क्या था जो मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर मैं वहीं पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गई। समीर बेड पर उस तरफ बैठ गया, जिधर ज्योति सो रही थी। वह बाईं करवट पर थी। उसकी पीठ समीर की तरफ थी। ज्योति मोटी तो नहीं थी, मगर जिस्म गदराया हुआ था। समीर कुछ देर तक तो उसे देखता रहा फिर उसने अपना हाथ नाइटी के ऊपर से भी उसके गोल-मटोल चूतड़ों पर रख दिया। वह उसके चूतड़ों को कुछ देर तक दबाता रहा। मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था, कि समीर किसी और के साथ यह सब करे। मगर मैं वहां बैठी थी कि वह मनमानी करने लगे तो उसे रोक सकूं।
समीर ने ज्योति की नाइटी को ऊपर सरकाना शुरू कर दिया। टेबल लैंप की रोशनी केवल बेड पर ही फोकस थी। ज्योति की नाइटी ऊपर सरकने के साथ उसकी नंगी चिकनी जांघे सफेद रोशनी में दमक उठीं। उसकी जांघें एकदम चिकनी थीं। उसका चेहरा उतना गोरा नहीं था, मगर उसकी गोरी-गोरी जांघे सुडौल और गोरी थीं। नाइटी उसके नितंबों ऊपर तक पहुंच चुकी थी। समीर की आंखें वासना से चमकने लगी थीं। पिंक फूलदार पैंटी में कसे उसके गोरे-पुष्ट और कसे हुए नितंब देखकर समीर का हाथ अपने लंड पर पहुंच गया। उसने ज्योति के चूतड़ों पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा। मैं रोकना चाहती थी मगर कुछ कह नहीं पाई।
समीर ने ज्योति की पैंटी में उंगली फंसाई और उसे नीचे सरका दिया। उसका मुंह खुल सा गया। ज्योति के गोरी-चिकनी भरी-भरी गांड को वह कुछ देर यूं देखता रहा। फिर उसने अपनी हथेलियां उन पर रख दी और धीरे-धीरे हाथ फेरने लगा। समीर की सांसों की आवाज इनती तेज हो गई कि कमरे में गूंजने लगी। वह ज्योति के नितंबों पर हाथ फेरते-फेरते झुका और उन्हें चूम लिया। एक बार ही बस नहीं की बल्कि पागलों की तरह बार-बार चूमने लगा। उसकी सांसे तेजी से आ जा रही थी। इधर ज्योति की सांसें सामान्य रूप से ही चल रही थीं, उसे इस सबका पता ही कहां था, वह तो बेसुध थी। मेरा चेहरा उतर गया। मुझे समीर से यह उम्मीद नहीं थी।
समीर ने पता नहीं कितनी बार मेरे साथ सेक्स किया था। मेरी चूत को भी दीवानों की तरह चाटा था, मगर कभी मेरी गांड पर चुम्मी तक नहीं ली थी। आज वही समीर ज्योति की गांड को बार-बार चूम रहा था। चूमते-चूमते उसने जो हरकत की वह तो मैं भी नहीं सोच सकती थी। उसने ज्योति की गांड की दरार को अपनी उंगलियों से फैलाया और उसके बीच अपना मुंह रख दिया। मुझे काफी घिन सी आई, मगर पता नहीं उसे क्या मजा आ रहा था। वह जीभ निकालकर उसकी गांड के बीच फिराने लगा। समीर उसके नितंबों की दरार फैला-फैलाकर मजे से गांड चाट रहा था। कुछ देर वह इसी में व्यस्त रहा, फिर उसने ज्योति को सीधा कर दिया। पहली बार मेरी और उसकी दोनों की नजर ज्योति की चूत पर पड़ी।
ज्योति की चूत बिलकुल किसी पाव की तरह फूली हुई थी। वह नियमित रूप से अपने नीचे के बाल साफ करती थी। टेबल लैंप की रोशनी में उसकी चिकनी गोरी चूत दमक रही थी। समीन ने उसकी चूत पर हाथ फिराया। चूत के दोनों होंठ खोलकर न जाने क्या ढूंढने की कोशिश करते नजर आया। फिर झुककर धीरे से चूम लिया। मैने उसे टोकना चाहा, मगर मुझे पता था कि अब समीर किसी की भी टोका-टाकी बर्दाश्त नहीं करेगा। इसलिए मैं खामोश ही रही। समीर ज्योति की चूत को चूमने और चाटने लगा। उसने ज्योति की दोनों टांगे फैला दीं, जिससे उसकी चूत पूरी तरह खुल गई और बीच का गुलाबी हिस्सा साफ नजर आने लगा। वह कुछ देर उसकी चूत के बीच ऐसे ही चाटता रहा, फिर अचानक अपना सिर उठाया मानो उसे कुछ याद आया। उसकी नजरें नगमा की तरफ घूम गईं। बगल में ही नगमा बिलकुल चित लेटी थी। उसकी कुर्ती ऊपर तक सरक आई थी, जिससे उसके पेट का कुछ हिस्सा नजर आ रहा था।
समीर उठा और घूमकर बेड के दूसरी तरफ आ गया। मैं समझ चुकी थी कि अब नंगी होने की बारी नगमा की है। मुझे इस खयाल से ही खुद पर लज्जा आने लगी कि अब वह नगमा के साथ भी वही सब करेगा, जो उसने ज्योति के साथ किया। इसलिए इस बार मैं खामोश नहीं रह पाई। मैने थोड़े गुस्से में कहा,
समीर यह तुम क्या कर रहे थे। तुमने केवल देखने को कहा था। यह सब करने को नहीं।
समीर मेरी तरफ मुड़ा और मेरे चेहरे को देखते हुए नर्म लहजे में बोला, देख ही तो रहा हू्ं। अगर थोड़ा छू लिया या चूम लिया तो इनका क्या घिस जाएगा। चोदने थोड़े जा रहा हूं।
मगर समीर, मैने कुछ कहना चाहा तो वह मेरी बात काटकर बोला-
मगर-वगर कुछ नहीं रंजना। थोड़ा मजा तो ले ही सकता हूं। तुम बस शांत होकर बैठो और मुझ पर यकीन करो।
मैं फिर खामोश हो गई, मगर मुझे पता नहीं क्यो ठीक नहीं लग रहा था कि वह नगमा के साथ भी यह सब करे। नगमा सीधी लड़की थी अब तक उसका कोई ब्याय फ्रेंड भी नहीं था। इस सब बातों से हमेशा दूर ही रहती थी। आज उसकी बेहोशी का फायदा उठाकर कोई उसकी इज्जत से खेलने जा रहा था। मगर मैं चुप ही रही। ज्यादा कुछ नहीं कह सकी। आखिर मैने ही तो उसे धोखा दिया था।

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समीर नगमा के पास बैठ गया। पहले तो वह उसके चेहरे को गौर से देखता रहा। बड़ी ही मासूम लग रही थी। नगमा का रंग ठीक वैसा था जैसा दूध में हलका सा सिंदूर मिला दिया जाए। वह काफी गोरी थी और लालिमा हमेशा चेहरे पर रहती थी। समीर उसके तराशे हुए होंठ देख रहा था, यह मुझे तब पता चला जब उसने झुककर उसके होंठों को चूम लिया। उसके होंठ थे ही ऐसे कि बस चूमने का मन करे। कई बार तो मेरा मन भी हुआ था कि इन गुलाबी पतले होंठों को यूं बस चूम लूं। समीर उसके होंठों को ही चूम रहा था। चूमते-चूमते उसने अपने हाथ उसके शिखर के समान खड़े चूंचक पर रख दिए। वह धीरे-धीरे उन्हें सहला रहा था, दबा रहा था कुछ इस तरह कि ज्यादा जोर से दबाने पर कहीं टूटकर बिखर न जाएं।
होंठों का पर्याप्त रसपान करने के बाद समीर ने उसकी कुर्ती ऊपर सरकाना शुरू की। नगमा का गोरा पेट पूरी तरह नजर आने लगा, फिर सफेद ब्रा में कसे उसके चूंचक। समीर ने उसकी कुर्ती उतारने का प्रयास किया कि मैं बोली,
समीर कुर्ती मत उतारो। बाद में पहनाने में दिक्कत आएगी। इसे ऐसे ही कंधे तक सरकाकर छोड़ दो।
समीर को भी मेरी बात समझ में आ गई। उसने कुर्ती को कांधे तक सरकाकर छोड़ दिया। पीछे हाथ डालकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा में कसे उसके चूंचक अब आजाद थे। बेहद गोरे, लालिमा लिए उसके चूंचक अभी तक अनछुए थे और शायद इसीलिए गर्व से उन्मक्त होकर खड़े थे। अग्रभाग पर गुलाबी निपल, बिलकुल किशमिश के दाने के समान छोटे-छोटे। समीर ने उन्हें कुछ इस तरह छुआ कि कहीं मैले न हो जाएं। दोनों चूंचक को धीरे-धीरे दबाने और सहलाने के बाद उसने मुुंह झुकाया और बड़ी ही नजाकत से उन्हें चूमने लगा, फिर एक चूंचक के निपल के मुंह में ले लिया। चूंचकों को हौले-हौले जीभ से सहलाता रहा, उन्हें चूसता रहा। समीर की हालत ऐसी थी कि मानो किसी को बिना मांगे कोई बड़ा खजाना मिल गया हो और वह उसे संभाल नहीं पा रहा हो।
नगमा के चूंचकों को चूमते-चूमते वह धीरे-धीरे नीचे सरकने लगा। पहले नगमा के गोरे चिकने पेट को चूमा, उसकी नाभि स्थल पर अपनी जीभ से गुदगुदी सी करने की कोशिश करता रहा। इसके बाद अपना मुंह सलवार के ऊपर से ही वहां रख दिया, जहां उसकी चूत थी। उसने जोर से सांस खींची मानो वह कुछ सूंखने की कोशिश कर रहा है। सिर उठाकर उस खुशबू या महक, जो भी हो अपने दिमाग में भरने की कोशिश करने लगा। फिर से मुंह उसकी चूत पर रखकर इस बार कुछ और जोर से सांस खींची। शायद उसे वह महक काफी पसंद आ रही थी। वह कुछ देर ऐसे ही मुंह रखकर बैठा रहा। इसके बाद सलवार का नाड़ा खोलने लगा और मेरी धड़कने बढऩे लगीं।
नगमा को इस हालत में किसी लड़के ने तो क्या, हम सहेलियों ने भी नहीं देखा था। ज्योति और मैं एक दूसरे और नगमा के सामने भी कई बार कपड़े बदल चुकी थीं। मगर नगमा ने हमेशा बाथरूम में ही कपड़े भी बदले। हम दोनों उसे चिढ़ाया भी करते थे, मगर वह मुस्कुरा कर रह जाती और एक ही बात कहती कि मुझे शरम आती है। आज वह नगमा मेरे सामने आधी नंगी पड़ी थी और कुछ ही देर में पूरी नंगी होने वाली थी। मेरी भी उत्सुकता काफी तेज थी कि इसकी चूत कैसी होगी, मैं भी देखना चाहती थी।
समीर नाड़ा खोल चुका था और सलवार का ऊपरी हिस्सा पकड़कर धीरे-धीरे नीचे सरकाने लगा। सलवार का निचला हिस्सा उसके नितंबों के नीचे दबा होने से खिसक नहीं रहा था। समीर ने आहिस्ता से उसके नितंबों के नीचे हाथ फंसाकर उठाया और सलवार को खींचकर नीचे तक किया और फिर पूरी तरह उतारकर एक तरफ उछाल दिया।
उफ गोरी-चिकनी जांघे, सुडोल जांघों के बीच कसी हुई सफेद-नीली धारियों वाली पैंटी। पैंटी में से उभरी उसकी छोटी सी चूत। यह सीन देखकर तो मैं भी मानो कहीं खो सी गई थी। समीर की तो हालत ही अलग थी। वह कुछ देर तक खड़े होकर नगमा का सौंदर्य निहारता रहा। फिर झुककर पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर मुंह रखकर जोर से सांस ली। वह नगमा की चूत की महक का दीवाना हो चुका था। उसने कई बार पैंटी पर मुंह और नाक रखकर उस महक को पूरी तरह दिमाग में बसाने की कोशिश की।
अचानक उसने पैंटी में उंगलियां फंसाई और उसे झटके के साथ नीचे खींच दिया। समीर के साथ मेरी भी आंखें चौंधियां सी गई।
नगमा की चूत, तिकोनी, गोरी और छोटी। उस पर भूरे रोयें तो थे, मगर न होने के बराबर। उसकी गोरी चूत की सुंदरता और बढ़ा रहे थे, वे रेशमी बाल। समीर एक पल को तो मानो जड़ सा हो गया। फिर उसका कांपता हाथ नगमा की चूत की तरफ बढ़ा। उसने पहले एक उंगली फिराई और फिर हथेली चूत पर रख दी। हौल-हौले उसे सहलाने लगा, मानो दुलार कर रहा हो। मैं अब तक मूर्ति बनी बैठी थी। मैं भी उठी और बेड के पास जाकर खड़ी हो गई। मैं गौर से नगमा की चूत को देखना चाहती थी। मैने समीर का हाथ उसकी चूत से हटाया और उसे देखने लगी। नजरें समीर की भी उससे हट नहीं रही थी।
फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं भी बेड पर बैठ गई और नगमा की चूत को छू लिया। केवल एक बार नहीं बल्कि बार-बार हर एंगल से उसे छूकर देखने लगी। इधर समीर से अब और सब्र नहीं हो रहा था। वह मेरी इस अप्रत्याशित हरकत पर कुछ बोला नहीं बल्कि मेरा हाथ उसकी चूत से हटाकर अपना मुंह रख दिया। और जोर-जोर से सांस लेने लगा, मानो अब वह उस कुंवारी चूत की असल महक को पा गया था। मैं ऐसे ही एकटक देखती रही। समीर ने उसकी चूत को भी दीवानों को तरह चूमने लगा। चूमते-चूमते जीभ निकालकर चाटने भी लगा। समीर को नगमा की चूत को चाटते देखकर मुझे पता नहीं क्यों जलन होने लगी। मगर मैं बैठी रही। मैने समीर को इतना उतावला कभी नहीं देखा था। उस समय भी नहीं जब पहली बार मैने उसके सामने समर्पण किया था और उसने मेरे कपड़े उतारे थे।
समीर बेतहाशा नगमा की चूत को चूम रहा था, चाट रहा था। उसकी चूत के संकरे होंठ मुश्किल से ही खुल रहे थे। उन्हें खोलकर बीच के गुलाबी हिस्से को मुंह में लेकर चूसने की कोशिश कर रहा था। उसकी जीभ चूत के छेद पर जाकर बार-बार टिक रही थी। समीर को यह बस करते काफी देर हो गई, मगर वह थक ही नहीं रहा था। मैने उसे हटने का इशारा किया तो उसने एक बार मेरी तरफ देखा और पता नहीं क्या सोचकर हट गया।
मैं नगमा की चूत को देखे जा रही थी। इसके बाद जो हुआ उससे समीर भी चौंक गया। मगर मैं क्या करती नगमा की चूत थी ही इतनी खूबसूरत की मैं खुद को रोक नहीं सकी। मैने अपने होंठ उसकी चूत के होंठों पर रख दिए। वाकई उसकी चूत से अजीब सी मगर लाजवाब महक आ रही थी। समीर के होंठों पर एकाएक मुस्कुराहट आ गई, मैने महसूस किया। मगर मैं रुकी नहीं मैं नगमा की चूत चूमती चली जा रही थी। चूमते-चूमते जीभ निकालकर चाटने लगी। मुझे अजीब सा मजा आ रहा था।
इधर समीर कुछ देर तो खड़ा रहा, फिर ज्योति के पास पहुंच गया। उसने ज्योति की नाइटी सरकाकर ऊपर की और उसकी ब्रा खोल दी। ज्योति के चूंचक, बूब्स का रूप ले चुके थे, मगर थे उतने ही टाइट। मैने एक बार आंख उठाकर देखा कि समीर क्या कर रहा है। उसने अपने सारे कपड़े कबके उतार दिए थे। उसका तना लंड देखकर मेरी चूत में खुजली होने लगी। समीर ज्योति के ऊपर लेट गया और उसकी चूंचियों को चूमने चूसने लगा। इधर मैं नगमा की चूत से मुंह नहीं हटाना चाहती थी। मेरा ध्यान तब टूटा जब, मैने पाया कि समीर का हाथ नीचे आया और वह लंड को ज्योति की चूत पर सेट करने की कोशिश कर रहा है।

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मैने तुरंत अपना मुंह नगमा की चूत से हटाया और कांपते स्वर में बोली,
समीर.... यह क्या कर रहे हो। तुमने कहा था कि ऐसा नहीं करोगे।
मुझे मत रोको रंजना। अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि लंड टूट जाएगा।
देखो समीर तुम्हें चोदना ही है तो मुझे चोद लो, मगर उसके साथ ऐसा मत करो। वह कई बार चुद चुकी है, उसे सुबह उठते ही पता चल जाएगा कि रात में उसके साथ क्या हुआ।
इतना कहते-कहते मैने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और समीर को अपनी चूत की तरफ इशारा करते हुए बोली,
तुम्हारी जान, तुम्हारा लंड खाने को बेताब है, आओ इसे फिर से फाड़ दो।
समीर को मेरी बात समझ आई या नहीं मगर वह ज्योति के ऊपर से उठ गया। मैने राहत की सांस ली। उसने कहा,
ठीक है, मैं इसे नहीं चोदूंगा, मगर एक शर्त है।
क्या मैने पूछा।
तुम्हें मेरा लंड चूसना होगा।
अब तक मैने समीर का लंड नहीं चूसा था। उसने कई बार इसके लिए कहा, मगर हर बार मेरा एक ही जवाब होता था कि मुझे घिन आती है। मगर आज शायद मैं नहीं टाल सकती थी, उसने मुझे फांसा ही कुछ इस तरह था।
मैने कहना चाहा, मगर समीर....
उसने मेरी बात काटकर कहा, मगर-वगर कुछ नहीं। अभी तुम इसकी चूत ऐसे चाट रही थी, जैसे बिल्ली मलाई चाटती है। अब घिन कहां गई। मेरा लंड ही तुम्हें पसंद नहीं।
अब मेरे पास कहने के वाकई कुछ नहीं था। नगमा की चूत को देखकर मैं अपना आपा पहले ही खो चुकी थी और अब मुझ पर भी पता नहीं वासना का कौन सा भूत सवार था। मैने हां में सिर हिला दिया।
समीर मुझे नगमा के पास ही लेटा दिया और फिर मेरे सीने पर बैठकर अपना लंड मेरे मुंह पर टिका दिया। मैने भी गप से पूरा लंड मुंह में भर लिया। मुझे भी उसका अजीब सा नमकीन स्वाद पसंद आ रहा था। मैं उसे जोर-जोर से चूसने लगी। इधर समीर झुका और उसने नगमा की चूत पर अपना मुंह रख दिया। अब हमारी पोजिशन कुछ ऐसी थी कि मैं नीचे लेटी समीर का लंड चूस रही थी। समीर मेरे ऊपर इस तरह लेटा था कि उसका मुंह नगमा की चूत पर था और वह शानदार चूत को बड़े मजे से चूस और चाट रहा था। मुझे नजर तो नहीं आ रहा था, मगर मैं महसूस कर सकती थी कि उसका एक हाथ ज्योति की चूत पर था और वह उसे सहला रहा था। मेरी चूत ऐसे ही अकेली थी, उसका अकेलापन मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मेरा हाथ उस पर चला गया। मैं अपने ही हाथ से अपनी चूत को मसलने लगी।
समीर उस समय तक उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुका था। मेरे मुंह में लंड डालकर ज्यादा देर टिका न रह सका, वह भी तब जब उसका मुंह नगमा की चूत और हाथ ज्योति की चूत पर हो। कुछ ही देर बाद उसके लंड ने वीर्य का एक फौव्वारा सा छोड़ा और मेरा मुंह भर गया। वह तेज-तेज सांस लेते हुए ऐसे ही पड़ा रहा फिर उठा। मेरे मुंह के चारों तरफ उसके वीर्य के छींटे लगे थे। मैं भी उठी और अपनी पैंटी से उसे साफ किया। वहीं समीर नगमा के पास ही लेट गया। उसका एक हाथ अब भी उसकी चूत पर ही खिलवाड़ कर रहा था, दूसरा हाथ शांति से ज्योति की चूत पर रखा था।

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मैं मुंह धोने बाथरूम में चली गई। वहां से लौटी तो पाया, समीर की उंगली ज्योति की चूत में घुस चुकी थी और उसका दूसरा हाथ अब भी नगमा की चूत पर चित्रकारी सा कर रहा था। उसका लंड फिर से कुतुब मीनार बना हुआ था। यह देखकर मुझे काफी हैरत हुई, क्योंकि मेरी चुदाई करने के बाद समीर आज तक कभी दोबारा तैयार नहीं हुआ था। यहां तक कि पहली बार भी मुझे एक बार ही चोदकर रह गया था। मैं सोच रही थी कि आज इसे क्या हो गया। मैने समीर के लौड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा,
समीर, यह फिर से खड़ा हो गया?
मैं क्या करूं जान, जब दो ऐसी सुंदर और सेक्सी लड़कियां सामने हों तो लंड भी कहां मानने वाला।
मगर समीर अब तुम अपनी मनमानी पूरी तरह कर चुके हो, अब जाओ।
अभी कहां मेरी जान। अभी तो मेरे लौड़े को चूत का स्वाद लेना है।
समीर तुम इनमें से किसी को भी नहीं चोदोगे। सुबह इन्हें पता चल जाएगा और मैं फंस सकती हूं। और वैसे भी नगमा तो अब तक कुंवारी ही है।
ठीक है डार्लिंग, मगर तुम्हें तो चोद ही सकता हूं न।
हां, वैसे भी मेरी चूत की प्यास बुझी नहीं है। आज जमकर चोद डालो। बहुत दिन हो गए धांसू चुदाई नहीं की तुमने मेरी।
ठीक है मेरी जान तो हो जाओ तैयार। मेरा लौड़ा भी आज किसी चूत फाडऩे को बेताब है।
मैं नंगी तो थी ही, तुरंत उसके पास चली गई। उसने कहा,
मगर पहले इन दोनों हसीनाओं को आखिरी बार चख तो लूं।
इतना कहकर समीर ने ज्योति की चूत पर मुंह रख दिया और कुत्ते की तरह उसे चाटने लगा। मैं खड़ी-खड़ी देखती रही, फिर मैने अपनी वह ख्वाहिश पूरी कर ली जो काफी समय से मेरे दिल में पल रही थी। मैने नगमा के नाजुक कोमल होंठों पर अपने होंठ रखे और उसे किस करने लगी। किस करते करते उसके होंठ चूसती तो कभी जीभ मुंह में घुसेड़ देती। वाह क्या मीठा स्वाद था, उसके मुंह का। मेरा हाथ उसकी नाजुक कुंवारी चुत पर थिरक रहा था। उसकी छोटी-छोटी चूंचियों को सहला रही थी। होंठों को चूमने के बाद मैने नगमा की चूंचियों को धीरे-धीरे चूसने लगी। समीर कुछ देर ज्योति की चूत चाटता रहा, फिर नगमा की चूत की तरफ आ गया और उसे चाटने लगा।
कुछ देर बाद उसने अपना लंड ज्योति के मुंह टिकाया और उसके होंठों पर रगडऩे लगा। ज्योति के होंठों पर लंड रगडऩे के बाद वह नगमा की तरफ घूमा और उसके मुंह पर लंड को टिकाकर रगडऩे लगा। इसके बाद उसने बारी-बारी से दोनों की चूंचियों को दबाया और मुंह में लेकर चुसका। इसके बाद उसने नगमा को उलटा कर दिया और उसके गोरे नितंबों के बीच मुंह डाल दिया। पता नहीं उसे गांड चाटने में क्या मजा आ रहा था। वह नगमा की गांड को चुसक-चुसक का चाट रहा था, इधर उसका लंड पहले से ज्यादा तना हुआ नजर आ रहा था। वह ज्योति की तरफ मुड़ा और नगमा की चूतड़ों की तरफ इशारा करते हुए कहा,
ट्राई इट मेरी जान। इसमें भी मजा आएगा।
मैं भी वासना के नशे में पूरी तरह झूम रही थी। समीर के इतना कहते ही मैने नगमा के चूतड़ों के बीच अपना मुंह फंसा दिया। पहले तो उसके चिकने चूतड़ों को चूमा फिर जीभ से सहलाने लगी। सहलाते-सहलाते चूतड़ों को दोनों हाथों से फैलाया और उसकी गांड के बीच जीभ रख दी। एक अजीब सा गुदगुदा अहसास हुआ, मगर सच कहती हूं बड़ा अच्छा लगा और मजा भी आया। मैने जीभ से गांड को कुरेदना शुरू कर दिया। इधर समीर ज्योति को उलटाकर उसके चूतड़ों के बीच मुंह डालकर चुसक रहा था। मैने भी अपनी जीभ से नगमा के गांड के भूरे झल्ले को मुंह में भरकर चूसना शुरू कर दिया। मेरी चूत पानी-पानी हो रही थी और अब मुझे यही लग रहा था कि कोई मूसल भी डाल दे तो भी निगल जाऊं।
मैने नगमा के चूतड़ों के बीच से मुंह हटाया और समीर से कहा,
प्लीज जानू और अब जल्दी से अपना लौड़ा मेरी चूत में डाल दो। सहन नहीं हो रहा।
समीर का लौड़ा भी तनकर मूसल बन चुका था और शायद उसकी हालत भी मुझसे जुदा नहीं थी। उसने ज्योति की गांड को छोड़ा और मुझे दोनों के बीच इस तरह लेटा दिया कि मेरा चेहरा दोनों के चूतड़ों के बीच था। फिर उसने मेरी चूत पर लंड सेट किया और एक जोरदार धक्का देते हुए मेरे ऊपर लेट गया। उसका मूसल जैसा लंड फिसलता हुआ मेरी चूत में क्या गया, पूरे शरीर में आनंद की लहर सी दौड़ गई। मुंह से जोर से सिसकारी निकली।
सी..ई...ई.....ई.....ओर समीर अब चोद दो इसे...आ...आ....ह.....।
समीर ने मेरे होंठों को प्यार से चूमा और धीरे सरगोशी के से अंदाज में बोला,
रंजना आज तुमने मुझे जिंदगी का सबसे बढिय़ा गिफ्ट दिया है। मैं हमेशा तुम्हारा अहसान मानूंगा।
तुम खुश हो न, बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैने भी उसके होंठों को चूम लिया।
समीर ने धक्के मारने शुरू किए। कुछ देर तक उसकी कमर एक लट में थिरकती रही। उसके हाथ ज्योति और नगमा के नितंबों पर थिरक रहे थे। और वह मुझे यहां-वहां चूम रहा था। फिर उसने मुंह नगमा के चूतड़ों पर रखा और चूमने लगा। उसके धक्के अब तेज होते जा रहे थे। कुछ देर बाद मुंह ज्योति के नितंबों पर रखा और चूमने लगा। बारी-बारी वह कभी नगमा तो कभी ज्योति के नितंबों को चूमता और उसके धक्कों से पूरा पलंग चरमराने लगा था। मेरे मुंह से हर धक्के पर जोरदार सिसकारी निकल रही थी। मैं उसे जोश दिला रही थी,
समीर और जोर से...आ...आ...ह..... हां और जोर से....चोदो मुझे, सी....सी...ई.... ओर समीर और जोर से धक्के मारो....आ...ह....
समीर था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी मगर उसकी स्पीड कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी। मेरी चूत उसका पूरा साथ दे रही थी। मेरी कमर भी नीचे से लचक रही थी। आखिर उसके लंड ने जवाब दे दिया, वीर्य की पिचकारी मेरी चूत में गिरी और वह हांफते हुए मेरे ऊपर ढेर हो गया। मैं जोर से चिल्लाई...
ओह....समीर....मर...गई...मैं....
इतना कहते हुए अपनी टांगे उसके दोनों तरफ लपेटकर कसकर उसका लंड अपनी चूत में कस लिया। समीर काफी देर तक मेरे ऊपर यूं ही पड़ा रहा। उसका लंड अपने आप मेरी चूत से बाहर आ चुका था। मैने ही उसे इशारा किया तो वह हटा और बाथरूम चला गया। कुछ देर बाद नहाकर वापस आया। तब तक मैं दोनों लड़कियों के कपड़ों को सही कर चुकी थी। उनकी चूत-गांड और मुंह को गीले कपड़े से पोंछकर साफ कर चुकी थी। बाथरूम से आकर समीर अपने कपड़े पहनने लगा और मैं बाथरूम चली गई। पेशाब करके और चूत धोकर आई तो देखा समीर नगमा के चेहरे पर झुका हुआ है। उसने दो-तीन बार नगमा के होंठों को चूमा और मेरी तरफ पलटता हुआ बोला,
आज तो ऐसा लग रहा कि जन्नत की सैर करके लौटा हूं।
मैं केवल मुस्कुरा कर रह गई। अब तक मेरा वासना का भूत उतर चुका था और सहेलियों को धोखा देने के लिए गिल्टी फील कर रही थी। समीर ने मेरा मुंह चूमा और कहा,
मैं चलूं... मैने सहमति में गर्दन हिला दी।
वह निकल गया। मैने कपड़े पहने। कमरे और बिस्तर की हालत ठीक किया और देखा कि कोई ऐसी बात न रह जाए कि दोनों को अपने साथ कुछ होने का अहसास भी हो। फिर मैं अपने कमरे में आकर सो गई। नींद तो क्या आनी थी, देर तक बस यही सोचती रही कि क्या मैने ठीक किया, मगर मुझे जवाब नहीं मिला और कुछ ही देर बाद जब सुबह की हलचल सुनाई देने लगी थी, मेरी आंखों में नींद दाखिल हो गई। दोस्तों ये थी वो कहानी जब मैने अपनी ही सहेलियों को अपने ब्याय फ्रेंड की हवस का शिकार बनवाया।

the end
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