चांदनी रात में भाभी का जिस्म…3

मैं नीचे की तरफ सरक आया। अब उनके पेटीकोट को, जो पहले ही घुटनों तक सरक आया था, पकड़कर धीरे से उठाया और ऊपर सरकाने लगा। पेटीकोट आसानी से ऊपर सरक गया और जैसे-जैसे ऊपर हो रहा था, चांद की हलकी रोशनी में पहले उनकी मखमली सांवली जांघें चमकी और फिर नजर आई उनकी तिकोनी, छोटी सी योनि, जिस पर हलके भूरे रोएं चमक रहे थे। मैने पेटीकोट को पेट पर रख दिया और उनकी योनि को ताकने लगा।

भाभी की योनि छोटी सी थी। बीच में हलकी सी रेखा जो टांगों के जोड़ पर नीचे कहीं गुम हो रही थी। इतनी कसी हुई थी कि जैसे कोई कुंवारी योनि हो। मैं उनकी योनि को एकटक निहारता रहा। कांपता हाथ योनि पर रख दिया। उंगली बीच की रेखा पर फिराने लगा। उनकी योनि के एक-एक कटाव को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। मेरा चेहरा काफी पहले उनकी योनि के एकदम करीब आ चुका था। योनि से आती पसीने और मूत्र की मादक गंध मुझे बेचेन कर रही थी। मैने चेहरा आगे बढ़ाकर उसे चूम लिया। उफ मेरा लिंग हाथ से बाहर निकला जा रहा था।
मैने अपनी जीभ निकाली और योनि के कटाव पर फिराने लगा। मै उनकी योनि की दरार खोलकर जीभ उसके बीच में फिराना चाहता था, लेकिन भाभी के जाग जाने से डर रहा था। थोड़ी देर योनि पर जीभ फिराता रहा, मुझे उसका वह स्वाद नहीं मिल रहा था, जिसके लिए मैं बेकरार था। भाभी की टांगे फैली होती तो योनि की दरार खुली होती, लेकिन उनकी टांगे एकदम चिपकी थी और योनि के होंठ बंद थे। आखिर मेरे सब्र का पैमाना टूट गया। मैने अपने दोनों हाथों की उंगली से योनि के होंठे थोड़े से खोले और जीभ को बीच में रख दिया। ओहो.... मूत्र और पेशाब का मिला-जुला स्वाद मेरी जीभ पर आ गया। अबकी बार मैने भाभी के शरीर में सिहरन सी महसूस की।
मगर मैं यह सब सोचने की स्थिति में नहीं था। मैने उनकी योनि के होंठों को थोड़ा और खोला, जितना खोल सकता था और जीभ बीच में फिराने लगा। योनि से आ रहा स्वाद मुझे पागल सा कर रहा था। मैने जीभ से चाटना शुरू कर दिया और बस ऐसा लगा कि खेल खत्म...
भाभी के शरीर में हरकत सी हुई और डर के मारे मेरी जान निकल गई। मैं तेजी से पीछे हटा। इस हड़बड़ी में पेटीकोट भी नीचे नहीं कर सका, लेकिन गनीमत है कि समय पर पीछे हो गया था। भाभी कसमसाई और बाईं करवट पर लेट गईं। अब उनके नितंब मेरी तरफ थे और आगे से उनका पेटीकोट उठ चुका था, इसलिए सांवली, मोटी जांघे नजर आ रही थी। मैं काफी देर तक वैसे ही बैठा रहा और फिर धीरे से खाट की तरफ सरका। इस बार मैने भाभी के शरीर को छुआ नहीं। बस उनके पेटीकोट को पीछे की तरफ से भी ऊपर कर दिया। इतनी आहिस्ता से कि उन्हें आभास भी न हो।
उनके नितंब नजर आ रहे थे। उन्होंने टांगे मोड़ रखी थी, इसलिए नितंबों के बीच की दरार थोड़ी खुल सी गई थी। मैने सोचा था कि भाभी के नंगे नितंबों को देखकर अपने लिंग को हाथ से ही हिलाकर उत्तेजना शांत कर लूंगा। भाभी के नितंब खुले तो मेरा मन फिर बेईमान हो गया।